योशिहिदे सुगा - फोटो : PTI
अरुण कुमार सिंह(संपादक)
द्वितीय विश्व युद्ध से पहले जापान भारत से बड़ी मात्रा में कपास और कच्चा लोहा आयात करता था और जापान के कुल व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 10 से 15 फीसदी थी। इस समय दोनों देशों ने अपनी व्यापारिक साझेदारी में विविधता लाई है और द्विपक्षीय व्यापार की हिस्सेदारी घटी है। वर्ष 2018 तक, भारत के पास जापान के कुल व्यापार का 1.1 फीसदी हिस्सा था, और जापान के पास भारत के व्यापार का हिस्सा 2.1 फीसदी था। अगस्त, 2011 में लागू जापान-भारत आर्थिक भागीदारी समझौते के बावजूद द्विपक्षीय व्यापार में कोई खास वृद्धि नहीं हुई। वर्ष 2018 में जापान-भारत व्यापार लगभग 17.6 अरब डॉलर का था, जो भारत और दक्षिण कोरिया के बीच व्यापार की तुलना में कम, और चीन के साथ भारत के व्यापार का मात्र पांचवां हिस्सा है।
चीन एवं पाकिस्तान जैसे हमारे पड़ोसियों की शत्रुता के बावजूद जापान के नए प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा का चुनाव, जो भारत के विश्वसनीय मित्र शिंजो आबे के करीबी हैं, देश के लोगों के लिए एक स्वागतयोग्य खबर है, क्योंकि वह निश्चित रूप से अपने पूर्ववर्ती की विरासत को जारी रखेंगे। अनुभवी राजनेता और लंबे समय तक कैबिनेट सदस्य रहे सुगा को हालांकि कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिनमें कोविड-19, बदहाल अर्थव्यवस्था और तेजी से बुजुर्ग होता समाज शामिल हैं, वहां की करीब एक तिहाई आबादी 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों की है।
योशिहिदे सुगा को शिंजो आबे का ‘दाहिना हाथ’ और उनकी नीतियों के प्रमुख निष्पादक के रूप में जाना जाता रहा है। जो बात उन्हें जापान के कई नेताओं से अलग करती है, वह है उनकी स्व-निर्मित छवि, क्योंकि वह किसी खानदान या कुलीन राजनीतिक परिवार से ताल्लुक नहीं रखते। स्वास्थ्य कारणों से अचानक शिंजो आबे के इस्तीफे के बाद जापान की संसद ने सुगा को देश के नए प्रधानमंत्री के रूप में चुना है। चुनाव के बाद जापान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वह जापान के संविधान में संशोधन कर सकेंगे, क्योंकि 1947 में संविधान लागू होने के बाद से उसमें संशोधन नहीं हुआ है और यह आबे का लंबे समय से लक्ष्य था।
आबे के इस्तीफे की दुखद खबर ऐसे वक्त आई, जब भारत और जापान, दोनों सुरक्षा चुनौतियों से जूझ रहे हैं। भारत अपनी विवादित सीमा पर चीन के साथ तनावपूर्ण गतिरोध में फंसा है, जबकि टोक्यो ने पूर्वी चीन सागर में विवादित सेनकाकू-डियाओयू द्वीप समूह के पास चीनी मछली पकड़ने और नौसैनिक नौकाओं के झुंड के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है।
जापान और भारत ने अक्सर चीन का उल्लेख किए बिना, नौवहन और उड़ान की स्वतंत्रता के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में 'खुली, पारदर्शी, समावेशी नियम' आधारित व्यवस्था का आह्वान किया है। लेकिन इसमें निस्संदेह चीन एक बड़ी अड़चन है। मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज ऐंड एनालिसिस (आईडीएसए) के महानिदेशक और पूर्व भारतीय राजनयिक सुजान आर. चिनॉय कहते हैं कि इस बात पर सहमति है कि चीन का एकतरफा रवैया पूरे क्षेत्र की शांति और विकास के लिए खतरा है। वह कहते हैं कि 'भारत और जापान दक्षिण-चीन सागर को वैश्विक समुद्री साझा क्षेत्र के रूप में संरक्षित करने में सक्रिय योगदान दे सकते हैं।’
जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे आबे को भारत में व्यापक रूप से द्विपक्षीय संबंधों को बदलने वाले नेता के रूप में माना जाता है। उन्होंने ही 2006 से दोनों देशों के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन की शुरुआत की और इस क्षेत्र में भारत के महत्व पर जोर देने के लिए जापान की रणनीतिक प्राथमिकता को 'एशिया-प्रशांत' से 'हिंद-प्रशांत' में स्थानांतरित कर दिया। आबे चार देशों के संवाद की रूपरेखा तय करने वाले पहले व्यक्ति थे, जो कि ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका का एक अनौपचारिक रणनीतिक मंच है। वह आबे ही थे, जिन्होंने 2018 में भारत के साथ असैन्य परमाणु समझौता करने के लिए जापान के विपक्षी दलों के विरोध की अनदेखी कर दी थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने जापान के नए प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा को बधाई देते हुए कहा है कि वह दोनों देशों के बीच 'विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी' को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए तत्पर हैं। मोदी ने आबे को भी भविष्य के प्रति शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हाल के वर्षों में उनके दूरदर्शी नेतृत्व और व्यक्तिगत प्रतिबद्धता के साथ भारत और जापान की साझेदारी पहले से कहीं अधिक गहरी और मजबूत हो गई है।
अपने नौ वर्षों के प्रधानमंत्री काल में आबे ने चार बार भारत की यात्रा की और वह पहले जापानी नेता थे, जिन्हें गणतंत्र दिवस के उत्सव में 2014 में आमंत्रित किया गया था। आबे के पैतृक घर में आमंत्रित होने वाले मोदी पहले विदेशी नेता थे और 2019 में उन्होंने विभिन्न बहुपक्षीय बैठकों से अलग आबे से चार बार मुलाकात की।
स्ट्रॉबेरी किसान के बेटे के रूप में जन्मे सुगा एक विनम्र पृष्ठभूमि से आते हैं। नए प्रधानमंत्री सुगा को जापान से सक्रिय प्रत्यक्ष निवेश बढ़ान सहित भारत में वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के विस्तार आदि को सुनिश्चित करने के लिए रणनीति विकसित करनी होगी। मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेलवे के लिए जापान ने ओडीए के माध्यम से कुल निर्माण लागत (18 खरब युआन) का 80.9 फीसदी पचास वर्षों में चुकाने (रियायती अवधि के 15 वर्ष सहित) की 0.1 फीसदी की ब्याज दर पर अति रियायती शर्तों के साथ देने पर सहमति व्यक्त की है।
विभिन्न देशों के साथ संबंधों के बारे में खुलासा करते हुए सुगा ने कहा है कि वह चीन और रूस के साथ स्थिर संबंध स्थापित करने की उम्मीद करते हैं और अमेरिका के साथ टोक्यो के गठबंधन को लागू करेंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि सुगा द्वारा आबे की विरासत को जारी रखना भारत के हित में बेहतर होगा, जिसे चीन से परेशानी झेलनी पड़ रही है और जो दक्षिण चीन सागर में जापान को लगातार परेशान कर रहा है। सुगा किसी नवाचार भरे कदम का परिचय नहीं भी दे सकते हैं, लेकिन वह उन संबंधों को शर्तिया बचाएंगे, जो मजबूत हैं और जिनकी नींव उनके पूर्ववर्ती ने रखी है।