सामने लाल आँखों वाला जल्लाद खड़ा था और पूछ रहा था "इस्लाम कबूल है" मगर उस हिन्दू राजा ने उत्तर दिया "धर्म मतलब आस्था और आस्था बदली नही जाती, शम्भु जब तक जियेगा हिन्दू बनकर जियेगा।"
1672 के समय की बात थी छत्रपति शिवाजी महाराज मंदिर में आरती करके मुड़े ही थे और सामने खड़े थे उनके ज्येष्ठ पुत्र संभाजी राजे। शिवाजी ने अपने ज्येष्ठ पुत्र का स्वागत किया, संभाजी राजे भारत की उन चुनिंदा हस्तियों में से एक थे जो शस्त्र के साथ साथ शास्त्र में भी पारंगत थे। रायगढ़ के दिग्गज ब्राह्मण ही उनसे शास्त्रार्थ करने का साहस रखते थे।
संभाजी महज 14 वर्ष के थे और उन्होंने 12 शास्त्रों की रचना कर दी थी, बड़ी बात यह थी कि यह रचना उन्होंने हिन्दी मराठी में नही बल्कि संस्कृत में की थी।
1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु हुई और संभाजी राजा बने। संभाजी राजे अब अगले छत्रपति बने, चूंकि वे स्वयं शास्त्रों में पारंगत थे इसलिए उन्होंने रामराज्य की पुनः स्थापना करने की ठान ली। उन्होंने रघुकुल राज का प्रस्ताव पारित करवाया जिसका जमकर विरोध हुआ और हिन्दू इतिहाकार भी उनकी छवि बिगाड़ने से पीछे नही हटे। दरसल संभाजी महाराज ने रघुवंशियो के समय के विधान लागू कर दिए जिसके अनुसार महिलाओ को शिक्षा प्राप्ति का अधिकार दे दिया साथ ही पर्दा प्रथा पर भी पाबंदी तो नही लगाई पर उसकी अनिवार्यता समाप्त कर दी।
मगर कदाचित यह सदी ही हिन्दू विरोध की थी एक तरफ औरंगजेब हिन्दू विरासतों को नष्ट कर रहा था दूसरी ओर कई ब्राह्मणों ने संभाजी महाराज का ब्राह्मण भोज अस्वीकार कर दिया। यहाँ ब्राह्मणों में दो गुट बन गए पहला जो संभाजी राजे और पेशवा मोरेश्वर पिंगले के समर्थन में था और दूसरा जो संभाजी राजे के रघुकुल राज के विरोध में था।
बहरहाल पेशवा मोरेश्वर पिंगले का समर्थन संभाजी राजे के लिये पर्याप्त था। उन्होंने अपनी रीत नही बदली और मुगलो से टक्कर लेने का विचार किया।
संभाजी राजे ने पहला ही हमला दौलताबाद पर किया और उसे मुगल चंगुल से छुड़ा लिया। इसके बाद उन्होंने आज के नासिक से मुगलो को खदेड़ दिया, नासिक में उनके पिता शिवाजी महाराज ने प्रभु श्री राम के कई मंदिर बनवाये थे क्योकि श्री राम ने वनवास के समय नासिक में निवास किया था।
मुगलो ने इन मंदिरों को तोड़ दिया था, ये सभी मंदिर पुनः बनवाये गए, जब नासिक मुगल मुक्त हुआ तब वहाँ के कई ब्राह्मणों ने संभाजी की तुलना श्री राम तक से कर दी क्योकि वर्षो पूर्व इसी धरती को श्री राम ने खर दूषण से मुक्ति दिलाई थी।
बहरहाल संभाजी लगातार अपने स्वराज्य का विस्तार करते गए मात्र 4 वर्षो में वे ग्वालियर के निकट तक पहुँच गए और यह औरंगजेब के लिये एक अलार्म था। औरंगजेब ने अपने सेनापति राजा रामसिंह से एक ही प्रश्न किया "क्या तख्त पलट गया" और जयसिंह ने कहा यदि ऐसे ही चलता रहा तो जरूर पलट जाएगा।
फिर तो क्या था औरंगजेब ने अपना मुकुट निकालकर रख दिया और सीधे संभाजी के पीछे भागा। ग्वालियर के पास ही मराठो और मुगलो की भीड़त हुई और मराठो की एकतरफा विजय हुई, मगर मराठा सेना ने ग्वालियर में प्रवेश नही किया क्योकि वे लगातार युद्ध करने की स्थिति में नही थे।
113 युद्धों तक संभाजी राजे कभी पराजित नही हुए, मगर आप मुगलो को हरा सकते है गद्दारों से कैसे निपटोगे और वो भी तब जब गद्दार आपके ससुर हो। संभाजी के सहयोगियों ने ही उनके राज औरंगजेब के सामने उगल दिए, संभाजी को मुगलो ने घेर लिया और एक छोटा सा युद्ध फिर हुआ जिसमें पेशवा मोरेश्वर पिंगले वीरगति को प्राप्त हुए और संभाजी महाराज तथा उनके सलाहकार कवि कलश गिरफ्तार हो गए।
इस घटना से कुछ वर्षों पूर्व संभाजी महाराज ने बुरहानपुर को जीता था और उस समय छत्रपति और पेशवा को सूचित किये बिना तथा मराठा सैनिको ने बुरहानपुर के कई मुस्लिमो का नरसंहार किया था तथा बलात्कार के मामले भी सामने आए थे। संभाजी राजे और मोरेश्वर पिंगले को जब यह पता चला तो वे दोनों ही क्रोधित हुए थे। मगर मुगलो ने फिर भी इस घटना का दोषारोपण संभाजी राजे पर कर डाला।
संभाजी राजे और कवि कलश को 100-100 कोड़े मारे गए हर कोड़े के साथ उनके मुख से हर हर महादेव ही निकल रहा था। औरंगजेब बौखला गया और उसने दोनो से इस्लाम कबूलने को कहा, तब संभाजी राजे ने कहा था " शम्भु जब तक जीवित है हिन्दू ही रहेगा"। औरंगजेब ने संभाजी राजे और कवि कलश को तड़पा तड़पा कर मारने का आदेश दिया, पहले दिन उनके नाखून उखाड़ दिए गए, दूसरे दिन जीभ काटी गई, तीसरे दिन आंखों में गर्म सरिया डाल दिया गया और चौथे दिन पैर काटे गए।
मगर इस्लाम कबूलने के लिये दोनो तैयार नही थे, 39 दिन की भीषण यातना के बाद संभाजी राजे और कवि कलश दोनो ने मन ही मन गायत्री मंत्र का जाप किया और अपनी आँखें सदा के लिये बंद कर ली। औरंगजेब ना संभाजी के जीवित रहते कुछ हासिल कर सका ना ही उनके मृत्युपर्यन्त। उल्टे जिस हिन्दू राजा को वो पहाड़ी चूहा कहता था उसी हिन्दू राजा पर उसने आधे से ज्यादा मुगलिया धन लूटा दिया इसका फायदा उत्तर में सिखों और जाटों को मिला।
संभाजी राजे का नाम आज भी अमर है, संभाजी राजे, कवि कलश और पेशवा मोरेश्वर पिंगले वे नाम है जिन्हें कभी भुलाया नही जा सकता इन्ही के कारण आज हमारे घरों में पूजा अर्चना हो रही है। जहाँ तक स्वराज्य का प्रश्न है तो 1757 में मराठाओ ने मुगलो को अपने अधीन कर लिया साथ ही आगरा और दिल्ली का शासन भी संभाल लिया।
मुगल सल्तनत जमीन फाड़कर आयी थी और जमीन में ही समा गयी। संभाजी राजे को आज भी एक परमशिवभक्त और पिता शिवाजी राजे के गर्व के रूप में देखा जाता है जबकि औरंगजेब जिसने अपने भाइयों को मरवा दिया और अपने पिता को कैद कर लिया उस पर बात करना तो मानो धर्म का अपमान है।
संभाजी राजे का व्यक्तित्व यही पूर्ण नही होता, वे दिन में 120 सूर्यनमस्कार करते थे। ऋग्वेद जिसे सबसे कठिन और बड़ा वेद कहा जाता है संभाजी राजे ने मात्र 10 वर्ष की आयु तक उसका आधा लेखन संस्कृत पूर्ण कर लिया था।
आज जब स्त्रियों के अधिकार की बात होती है लोग सावित्रीबाई फुले और भीमराव अंबेडकर को आगे कर देते है मगर संभाजी महाराज ने तो वर्षो पूर्व ही महिलाओ को उनके अधिकार दे दिए थे मगर उन्हें कही श्रेय नही मिलता। आखिरकार हिन्दू राजाओ को नीचा दिखाने का ट्रेंड भी आवश्यक है अन्यथा औरंगजेब का महिमामंडन कैसे होगा?
आज संभाजी महाराज की जन्मतिथि है, महान शिवभक्त, परमप्रतापी, हिन्दू स्वराज्य रक्षक छत्रपति संभाजी राजे भौसले को शत शत नमन।