धँस गया काँटा करौंदे का
जो अभी बस पाँव में
जो पक गए हैं फल
गूलर, बेर के भी , केर के ..
मद भरा महुआ टपकता
है हवा को टेर के ...
ओ मंजरी महकी है बागों की
जो गमकती छाँव में...
आम बौराए, झरी है
नीम मेरे गाँव में..
फूटता सेमल लिपटता
राह चलते पाँव में...
पीले पड़े पीपल - पात
झड़कर, हरे फिर हो गए
सिन्दूरी पाकड़ के टूँसे
संवाद तन में छोड़ गए
गोलोक विहारी राय
महामंत्री
( राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच )