आज 23 जुलाई का पावन दिन है, आज के दिन एक इतिहास पुरुष ने भारत की पवित्र धरती पर जन्म लिया था, उनका नाम था चन्द्रसेखर जिन्हें चन्द्रसेखर आजाद के नाम से जाना जाता है क्यूंकि वो आज़ादी के मतवाले थे और भारत की आज़ादी के लिए उन्होंने अपने प्राण दे दिए
आज चन्द्रसेखर आजाद की जन्म जयंती है, आज ही के दिन मध्य प्रदेश राज्य के भवरा में उनका जन्म हुआ था, मूल रूप से चन्द्रसेखर आजाद बदरका गाँव के रहने वाले थे जो की वर्तमान में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में आता है
बचपन से ही चन्द्रसेखर आजाद एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, वो शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से काफी बलवान थे और उन्होंने होंश सँभालते ही भारत माता को आज़ादी दिलवाने की सौगंध खाई थी
चन्द्रसेखर आजाद पक्के धर्मप्रेमी और राष्ट्रवादी थे, उन्होंने अंग्रेजो को उनके ही भाषा में जवाब देने की ठानी और भारत की आज़ादी के लिए वो अन्य भारतीयों के साथ मिलकर संघर्ष करने लगे
उनके इस कार्य में उन्हें भगत सिंह जैसे युवको का भी साथ मिला, चन्द्रसेखर आजाद भगत सिंह के भी लीडर थे
चन्द्रशेखर की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्रारम्भ हुई। पढ़ाई में उनका कोई विशेष लगाव नहीं था। इनकी पढ़ाई का जिम्मा इनके पिता के करीबी मित्र पं. मनोहर लाल त्रिवेदी जी ने लिया। वह इन्हें और इनके भाई को अध्यापन का कार्य कराते थे और गलती करने पर बेंत का भी प्रयोग करते थे। चन्द्रशेखर के माता पिता उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहते थे किन्तु कक्षा चार तक आते आते इनका मन घर से भागकर जाने के लिये पक्का हो गया था। ये बस घर से भागने के अवसर तलाशते रहते थे।
इसी बीच मनोहरलाल जी ने इनकी तहसील में साधारण सी नौकरी लगवा दी ताकि इनका मन इधर उधर की बातों में से हट जाये और इससे घर की कुछ आर्थिक मदद भी हो जाये। किन्तु शेखर का मन नौकरी में नहीं लगता था। वे बस इस नौकरी को छोड़ने की तरकीबे सोचते रहते थे। उनके अंदर देश प्रेम की चिंगारी सुलग रहीं थी। यहीं चिंगारी धीरे-धीरे आग का रुप ले रहीं थी और वे बस घर से भागने की फिराक में रहते थे। एक दिन उचित अवसर मिलने पर आजाद घर से भाग गये।
1922 में जब गांधी ने चंद्रशेखर को असहकार आन्दोलन से निकाल दिया था तब आज़ाद और क्रोधित हो गए थे। तब उनकी मुलाकात युवा क्रांतिकारी प्रन्वेश चटर्जी से हुई जिन्होंने उनकी मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से करवाई, जिन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की स्थापना की थी, यह एक क्रांतिकारी संस्था थी। जब आजाद ने एक कंदील पर अपना हाथ रखा और तबतक नही हटाया जबतक की उनकी त्वचा जल ना जाये तब आजाद को देखकर बिस्मिल काफी प्रभावित हुए।
इसके बाद चंद्रशेखर आजाद हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए थे और लगातार अपने एसोसिएशन के लिये चंदा इकठ्ठा करने में जुट गए। वे एक नये भारत का निर्माण करना चाहते थे जो सामाजिक तत्वों पर आधारित हो और उसमे भारत विरोधियों का कोई स्थान ना हो .
आज़ाद ने कुछ समय तक झांसी का अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बनाया था | झांसी से 15 किलोमीटर की दूरी पर ओरछा के जंगलो में निशानेबाजी का अभ्यास करते रहते थे | वो अपने दल के दुसरे सदस्यों को भी निशानेबाजी के लिए प्रशिक्षित करते थे |
उन्होंने सतर नदी के किनारे स्थित हनुमान मन्दिर के पास एक झोंपड़ी भी बनाई थी | आजाद वहा पर पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के सानिध्य में काफी लम्बे समय तक रहे थे और पास के गाँव धिमारपुरा के बच्चो को पढाया करते थे | इसी वजह से उन्होंने स्थानीय लोगो से अच्छे संबंध बना लिए थे | मध्य प्रदेश सरकार ने आजाद के नाम पर बाद में इस गाँव का नाम आजादपूरा कर दिया था |
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना 1924 में बिस्मिल ,चटर्जी ,चीन चन्द्र सान्याल और सचिन्द्र नाथ बक्शी द्वारा की गयी थी | 1925 में काकोरी कांड के बाद अंग्रेजो ने क्रांतिकारी गतिविधियो पर अंकुश लगा दिया था |इस काण्ड में रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाकउल्ला खान , ठाकुर रोशन सिंह और राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को फांसी की सजा हो गयी थी | इस काण्ड से Chandra Shekhar Azad चंद्रशेखर आजाद ,केशव चक्रवती और मुरारी शर्मा बच कर निकल गये |