नई दिल्ली - चिट फंड एक्ट 1982 के मुताबिक चिटफंड स्कीम का मतलब है कोई व्यक्ति या लोगों का समूह एक साथ समझौता करे। इस समझौते में एक निश्चित राशि या कोई सामान किश्तों में जमा किया जाए। तय वक्त में उसकी नीलामी की जाए। जो फायदा हो वह बाकी लोगों में बांट दिया जाए। इसमें बोली लगाने वाले शख्स को पैसा लौटाना भी होता है।
चिटफंड नियम के मुताबिक ये स्कीम किसी संस्था या फिर व्यक्ति के जरिए आपसी संबंधियों या फिर दोस्तों के बीच चलाया जा सकता है। लेकिन अब चिटफंड की जगह पर सामूहिक निवेश योजना लागू है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका ढांचा इस तरह होता है कि चिट फंड को सार्वजनिक जमा योजनाओं की तरह चलाया जाता है और कानून का इस्तेमाल घोटाला करने के लिए किया जाता है।
शारदा चिटफंड (Saradha Chit Fund)
दरअसल शारदा चिटफंड घोटाला पश्चिम बंगाल का एक बड़ा आर्थिक घोटाला माना जाता है। इसमें कई बड़े नेताओं के नाम जुड़े हुए हैं। इस घोटाले में करीब 40 हजार करोड़ की हेराफेरी हुई थी। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने CBI को आदेश दिया कि इस मामले की जांच करे। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में पुलिस को जांच में सहयोग करने को कहा था।
रोज वैली घोटाला (Rose Valley Scam)
शारदा चिटफंड (Saradha Chit Fund) की तरह ही रोज वैली घोटाले (Rose Valley Scam) पर भी काफी वक्त से विवाद चल रहा है। विवाद इस वजह से क्योंकि इसमें कई बड़े नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं। दरअसल, रोज वैली चिटफंड घोटाले में रोज वैली ग्रुप के लोगों ने 2 अलग-अलग स्कीम का लालच दिया और करीब 1 लाख निवेशकों के पैसे का गबन किया।
इसमें आशीर्वाद और होलिडे मेंबरशिप स्कीम के नाम पर ग्रुप ने लोगों कों ढेर सारा रिटर्न वापस देने का वादा किया। ग्रुप के एमडी शिवमय दत्ता इस घोटाले के मास्टरमाइंड बताए जाते हैं। कहा जाता है कि लोगों ने इनकी बातों में ही आकर निवेश किया था।