सम्पादकीय -
अभी ताजा ताजा चर्चित दो ब्यूरोक्रेट्स से शुरू करता हूँ।
एक हैं बी चंद्रकला, तेलंगाना से,2008 बैच की IAS यूपी काडर मिला। चार साल बाद यूपी शासन ने डीएम का पद दे दिया, उसके बाद मैडम का जलवा शुरू हुआ, अचानक कहीं पहुँचना, काम में कोताही बरतने वाले अफसरों, ठेकेदारों, शिक्षकों की सरेआम जलालत, मलामत। एक पत्रकार ने फोन पर कुछ जानना चाहा, उसकी माँ-बहन एक कर दी, भेजूँ तेरी बहनिया के पास एक गैर मर्द को। जनता अभिभूत थी, हमें चाहिए भी ऐसे ही कड़क, दमदार, इमानदार और निष्पक्ष अफसर जो जनता के पैसे जाया न होने दें, सही काम हो। लोग लहालोट थे यह डायनामिज्म देखकर, प्रसिद्धि ऐसी फैली कि रातोंरात सोशल मीडिया की तारिका बन गयीं। फेसबुक पर 86 लाख फालोवर, ट्वीटर पर 8 लाख फैन क्लब्स।
अरुण कुमार सिंह (संपादक सर्चिंग आईज हिंदी /इंग्लिश दैनिक एवं मासिक)
फिर एकाएक एक न्यूज आती है, सीबीआई ने उनकी रिहायशों सहित 12 जगहों पर छापेमारी की। लोग आवाक थे, इतनी ईमानदार और कड़क आफिसर के विरूद्ध छापेमारी, फिर खबरें छनकर आने लगीं, रेत खनन के पट्टों के आबंटन गलत तरीके से, नियमों को ताक पर रखकर। मामला इतना गंभीर की तत्कालीन सीएम अखिलेश तक आँच पहुँच रही है। एफआईआर दर्ज हो गयी, बी चंद्रकला के अवैध आय का भी मामला बना।
आलोक वर्मा, सीबीआई डायरेक्टर, सांवैधानिक पद, जबरदस्त पावर, सीबीआई का नाम सुनते ही रूह कांप जाती है। एकदिन न्यूज आयी, सरकार ने जबरिया छुट्टी पर भेज दिया, उनके नायब राकेश अस्थाना सहित। बहुत बड़ी न्यूज थी, सीबीआई डायरेक्टर को छुट्टी पर भेजना। राजनीति शुरू हुई, मामला न्यायालय में, न्यायनिर्णय हुआ सेलेक्ट कमिटी ही हटा सकती है। सेलेक्ट कमिटी ने हटा दिया। भन्नाए आलोक वर्मा ने कहा वे आलरेडी रिटायर्ड पर्सन हैं, सो रिटायर समझा जाय। खबरें छनकर आयीं दिल्ली की 5 पाश कालोनियों में साहब की पाँच अट्टालिकाएं हैं। 10 कंपनियाँ हैं इनकी मिल्कियत, शराब का कारोबार है।
सवाल है ये दो ब्यूरोक्रेट्स कौन हैं ? बेशक ये भारतीय शासन व्यवस्था में सिस्टम के दो महत्वपूर्ण पद हैं जिनपर सरकार के नीतियों के कार्यावन्यवन की महती जिम्मेवारी है। एकदम झक सफेद टाइट कालर, चेहरे से रूआब बरसता हुआ, सामने देख लोग भय से रास्ता छोड़ देते हैं। पर वास्तविकता क्या है, ये सफेदपोश अंदर से बिल्कुल काले, भ्रष्ट, कानून की धज्जियां उड़ाते। चंद्रकला तो वंचित वर्ग से हैं, उन्हें जनता का दर्द शिद्दत से महसूस होना चाहिए था। ऐसा क्यों नहीं हुआ ? इसका कारण है कि हम भारतीयों में एक नयी संस्कृति विकसित हुई है-आप सुखी तो जग सुखी।
इन कार्रवाइयों पर राजनीति क्या कहती है, यूपी के दो भूतपूर्व सीएम का कहना है कि सीबीआई का मिसयूज किया जा रहा ब्लैकमेल करने को, डराने को। तो फिर क्यों नहीं नियम दिखाकर साबित कर देते कि पट्टे देने में निर्धारित प्रक्रिया का पालन हुआ है। इ टेंडर करना था, नहीं किया। जिले के दो दबंगों को ही जिले के सारे पट्टे मिल गये, मतलब एजेंसियां अंधी हैं।
1947 से 2014 तक यह सिस्टम विकसित और मजबूत होता आया है
आलोक वर्मा के लिए तो पूरी कांग्रेस, पूरा विपक्ष, दलाल मीडिया उनके बचाव में उतरी हुई है।खड़गे दहाड़ रहा था, यार साबित कर दो न कि वेतन की कमाई से आलोक वर्मा ने ये सारी संपत्ति बनायी है,दे दो जवाब। अभी वर्मा की और कितनी परिसंपत्तियां हैं इसकी जाँच होनी है। ये दो उदाहरण बताते हैं कि सफेदपोश कितने बड़े दोगले हैं, जितना बड़ा ओहदा उतनी बड़ी लूट करते हैं।
ये दो उठाये गये सैंपल हैं टाप ब्यूरोक्रेट्स के जिनके जिम्मे सिस्टम में बहुत बड़ी जिम्मेवारी है सरकार के संपत्ति के रक्षा करने की। दोषियों को पकड़ने की,और ये खुद उसी दुष्कृत्य में संलिप्त हैं। इनका टेस्ट रिजल्ट नेगेटिव आया है। पूरी भारतीय जनता आश्वस्त है कि पूरे सिस्टम में कम से कम 70% आधिकारियों, कर्मियों के टेस्ट रिजल्ट नेगेटिव ही आयेंगे। आप कल्पना कीजिए कि जनता की कितनी धनराशि सिर्फ सरकारी कर्मी लूट रहे।
कांग्रेस बहुत पुरानी पार्टी है। उसमें एक से एक शातिर रणनीतिकार हैं। वह समझ चुकी थी कि जनता के बीच में से जबतक कुछ दलाल नहीं चुने जायेंगे हो हल्ला मचेगा, जो हानिकारक भी हो सकता है सो जनता को करप्ट बनाने का खेल शुरू हुआ। हर नेता अपने क्षेत्र में दलाल बनाने लगे जो प्रखंड से लेकर जिले तक लोगों का काम कराते, दलाली लेते, नेताजी का गुणगान करते, जनता को बताते नेताजी कितने त्यागी और महान हैं। यूपी बोर्ड की परीक्षा में कड़ाई होने पर 10 लाख छात्रों द्वारा परीक्षा का वहिष्कार और बिहार के इंटर टापर का पोलिटिकल साइंस को पोरोडिकल साईंस उच्चारित करना ये सिर्फ सरकारी भ्रष्टाचार नहीं बल्कि जनता का भी इस भ्रष्टाचार में कदम से कदम मिलाकर चलने का ज्वलंत उदाहरण है।*
*2004 से 2014 के बीच कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के नये रिकार्ड कायम किए, बैंकिंग व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया गया। आँख मूँदकर ऋण बाँटे गये, बैंकों का एनपीए बढ़कर 84 % हो गया। यूपीए सरकार बखूबी उसे 34 % प्रचारित करती रही, बैंक डूबने के कगार पर आ गये।*
इसी राजनैतिक, आर्थिक और सामरिक परिदृश्य में आगमन हुआ मोदी का। कार्यभार संभालते ही दिमाग की चूलें हिल गयीं। डूबती अर्थव्यवस्था, सिस्टम में लूट का वर्चस्व,* *सामरिक रूप से कमजोर भारत, आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर, पाकिस्तान और चीन जैसे दो पारंपरिक दुश्मन दोनों तरफ से हमले को तैयार। कोई दूसरा होता तो चुपचाप सिस्टम के आगे सरेंडर कर देता, हालातों के आगे विवश। पर बंदा जिगरवाला है। राष्ट्रप्रेम हिलोरें ले रहा था दिल में, चैलेंज एक्सेप्ट किया और साथ मिला एक माहिर रणनीतिकार अजीत डोवाल का।* *चीजों की सच्चाई समझी और सबसे पहले पड़ोसी छोटे देशों भूटान, नेपाल, जापान की यात्रा कर चीन के विरूद्ध रणनीति तैयार की। फिर दौरा शुरू किया महाशक्तियों का।
आतंकवाद के विरूद्ध लड़ने का अटल निश्चय दिखाकर पाकिस्तान को विश्व से अलग थलग किया और उनसे व्यापारिक तथा सामरिक रिश्ते प्रगाढ़ किये। फिर भारतीय वित्तीय संस्थानों की तरफ निगाह की और एक झटके में नोटबंदी का एक ऐसा अभूतपूर्ल निर्णय लिया जो आत्मघाती था। इसके पूर्व भी इंदिरा जी के समय में इसकी बात उठी थी तो उन्होंने अपने वित्तमंत्री को झिड़के हुए कहा था : क्यों ? क्या आगे चुनाव नहीं लड़ना। एक कदम और जमाखोरों की कमर टूट गयी। आतंकियों और माओवादियों का शिराजा बिखर गया।
बड़े बड़े राजनेता कंगाल हो गये लेकिन यह दुख ऐसा था कि आपन हारल मेहरी के मारल इ दुख केहू से कहलो ना जाला। पर आज भी उनकी चीख जनता के नाम पर सुनाई देती है, उनकी व्यथा आप समझ सकते हैं। फिर एक और अभूतपूर्व निर्णय लिया सर्जिकल स्ट्राइक का और इसबार पाकिस्तान के हौसले तोड़ दिये। फिर डोकलाम विवाद पर चायना को तारे दिखाये। अब मोदी का ताप देख बैंक लुटेरों ने भागना शुरू किया। पर मोदी मोदी है, अब लुटेरे विदेश में बैठे कराह रहे हैं। मैं तो लौटाना चाहता हूँ। देश में तीस तीस साल से लंबित परियोजनाओं को मोदीराज में पूरा किया जा रहा है।*
बिहार के लोग जानते हैं जब हमारे यहाँ कहा गया था : सड़क तुम गरीब का करेगा, बस त सब बड़ आदमी का चलता है, बढ़िया सड़क पर रेस बस चलायेगा त तुमलोग का बाल बच्चा पिचा जायेगा। पुलिस भी फट से तुम्हारे दुआरी पर पहुँच जायगी, और जनता ने जय जयकार किया था।*
आज 6 लेन, 8 लेन, एक्सप्रेस वे, सुपर एक्सप्रेस वे बन रहीं। क्या रेलवे प्लेटफार्म पर की सफाई भी हमें नहीं दिखती।
गोरखपुर क्षेत्र में पिछले चालीस वर्षों से हर साल दसियों हजार बच्चे इन्सेफेलाइटिस से मरते थे और उसी बीमारी के नाम पर सरकारी लोग भारी माल लूटते थे। इस साल मौत की बात सुनी क्या ? योगी ने मौत की जड़ ही उखाड़ दी। यह साधारण अचीवमेंट है ?*
कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष सेलेक्टिव विकास चाहते हैं, अपना और अपने दलालों का। मोदीजी देश को सेट करना चाहते हैं। यह आपकी च्वाईस है कि आप अकेले खुश रहना चाहते हैं या पड़ोसी की भी खुशी चाहते हैं। एक बात जान लें अगर आपका पड़ोसी भूखे मर रहा, बेहाल है, त्रस्त है तो आप भी सुरक्षित नहीं, मरता क्या नहीं करता। हमारे हक में है कि पूरा भारत खुशहाल हो जिसके लिए मोदी अहर्निश मेहनत कर रहे। हमारा देश समृद्ध, स्वस्थ और सबल होगा तो हम भी समृद्ध और सबल होंगे। यह हमारे आपके आत्ममंथन का दौर है कि हम लुटेरों को सत्ता सौंपे या एक नि:स्पृह कर्मयोगी को।*
*वंदेमातरम्, जयहिद